आपका माइंडसेट ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है ! Mindset Book Summary written by Carol Dweck | Audiobook | Book Summaries in Hindi

क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी सोच ही आपकी सबसे बड़ी ताकत या सबसे बड़ी रुकावट बन सकती है? सोचिए, अगर आप हर बार असफलता से डरकर पीछे हट जाते हैं, या यह मान लेते हैं कि आप आगे नहीं बढ़ सकते, तो क्या आप वाकई अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच पाएंगे? नहीं ना? लेकिन क्या हो अगर आपकी सोच ही बदल जाए? क्या हो अगर आप हर चुनौती को एक नए मौके की तरह देखने लगें? मशहूर मनोवैज्ञानिक कैरोल ड्वेक की किताब "माइंडसेट" यही सिखाती है — कि आपकी सफलता केवल टैलेंट या मेहनत से नहीं, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप किस तरह से सोचते हैं। अगर आप जानना चाहते हैं कि कैसे एक छोटी सी सोचने की आदत आपकी ज़िन्दगी बदल सकती है, तो इस बुक समरी को आखिर तक ज़रूर पढ़ें।




इस किताब में दो तरह की मानसिकता के बारे में बताया गया है — स्थिर मानसिकता और विकास मानसिकता। स्थिर मानसिकता वाले लोग यह मानते हैं कि उनकी बुद्धिमत्ता और क्षमताएं जन्म से ही तय होती हैं और इन्हें बदला नहीं जा सकता। वे सोचते हैं कि किसी व्यक्ति की सफलता केवल उसकी प्राकृतिक प्रतिभा पर निर्भर करती है। ऐसे लोग अपने सीमित गुणों को लेकर संतुष्ट रहते हैं, और जब जीवन में कोई मुश्किल आती है, तो जल्दी हार मान लेते हैं। असफलता से उन्हें डर लगता है क्योंकि वे इसे अपनी पहचान का हिस्सा मान बैठते हैं। वे चुनौतियों से बचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि कहीं उनकी कमजोरियों का पता न चल जाए। ऐसे लोग मेहनत करने और सीखने की बजाय, जल्दी सफलता पाने की कोशिश करते हैं।

स्थिर मानसिकता वाले लोग आलोचना को भी नकारात्मक तरीके से लेते हैं, उन्हें लगता है कि कोई उनकी कमियों की तरफ इशारा कर रहा है। वे दूसरों से मुकाबला करने की बजाय, अपनी वर्तमान स्थिति को बनाए रखने में ही विश्वास रखते हैं। इस सोच के कारण वे कभी अपनी पूरी क्षमता को पहचान ही नहीं पाते, क्योंकि वे मानते हैं कि जो कुछ भी उनके पास है, वह हमेशा वैसा ही रहेगा। इस मानसिकता के कारण लोग अक्सर अपने प्रयासों में कमी रखते हैं और असफलता के डर से बड़े सपने देखने से कतराते हैं।

अब बात करते हैं विकास मानसिकता की। विकास मानसिकता वाले लोग मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता और क्षमताएं समय के साथ बढ़ाई जा सकती हैं। वे हर अनुभव को सीखने का एक मौका मानते हैं और अपनी रणनीतियों को उसी हिसाब से बदलते रहते हैं। वे चुनौतियों का स्वागत करते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि मुश्किलें ही उन्हें और बेहतर बनाएंगी। वे कठिनाइयों से डरते नहीं, बल्कि उन्हें एक नए अवसर की तरह देखते हैं।

विकास मानसिकता वाले लोग आलोचना को भी सकारात्मक रूप में लेते हैं ताकि वे खुद को सुधार सकें। वे हमेशा नए अनुभवों और ज्ञान के लिए खुले रहते हैं और हर मौके को विकास का एक अवसर मानते हैं। उनका मानना होता है कि सफलता सिर्फ टैलेंट से नहीं मिलती, बल्कि मेहनत, समय और लगन से मिलती है। वे अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं और कभी रुकते नहीं। इसके साथ ही वे दूसरों से प्रेरणा लेते हैं, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करते हैं और अपने ज्ञान और कौशल को लगातार बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।

जब हम स्थिर मानसिकता से निकलकर विकास मानसिकता की ओर बढ़ते हैं, तब हम उन सीमाओं से मुक्त हो जाते हैं, जो हमने खुद अपने दिमाग में बना रखी होती हैं। यह मानसिकता हमें हर कठिनाई को एक नए अवसर के रूप में देखने की शक्ति देती है और लगातार सुधार करने की प्रेरणा देती है। वहीं, स्थिर मानसिकता में फंसे लोग अपने आप को सीमित मानते हैं और असफलताओं से डरते रहते हैं।

इसलिए, अगर आप सच में अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो केवल टैलेंट पर भरोसा मत कीजिए। अपनी सोच को बदलिए, विकास मानसिकता अपनाइए — क्योंकि यही वह तरीका है जिससे आप अपनी असली क्षमता तक पहुँच सकते हैं और सफलता के नए रास्ते खोल सकते हैं।

असली सफलता निरंतर प्रयास, मेहनत और सीखने की इच्छा में छिपी होती है। किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए हमें एक सच्चे नायक की तरह लगातार कोशिश करनी पड़ती है और साथ ही हमें अपनी गलतियों से सीखने की आदत भी डालनी चाहिए। टैलेंट ज़रूरी होता है, लेकिन केवल टैलेंट से सफलता नहीं मिलती। जब तक आप अपनी क्षमताओं को मेहनत, अभ्यास और सुधार से बढ़ाते नहीं हैं, तब तक आपके टैलेंट का सही उपयोग नहीं हो सकता। उदाहरण के तौर पर, एक अच्छा क्रिकेट खिलाड़ी भी रोज़ अभ्यास करता है, न कि सिर्फ अपनी जन्मजात प्रतिभा पर निर्भर रहता है। यही बात हर क्षेत्र में लागू होती है—चाहे वह कला हो, विज्ञान हो, शिक्षा हो, खेल हो या फिर व्यापार। निरंतर प्रयास ही हमें आगे बढ़ने और सफलता हासिल करने की दिशा में ले जाता है।

गलतियों से सीखना और उन्हें सुधारना सफलता की प्रक्रिया का जरूरी हिस्सा होता है। सफल लोग गलतियों से डरते नहीं हैं। वे उन्हें सुधारने और उनसे सीखने का एक अवसर मानते हैं। अगर आप गलती करने के डर से किसी चुनौती का सामना नहीं करेंगे, तो आप कभी कुछ नया नहीं सीख पाएंगे। जब हम अपनी गलतियों से सीखते हैं और अपनी कमजोरियों को सुधारते हैं, तो हम हर दिन थोड़े और बेहतर बन जाते हैं।

सफलता कोई एक बार की घटना नहीं होती, यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें निरंतर सुधार की आवश्यकता होती है। यह सही है कि हम कोई भी चीज़ पहली बार में पूरी तरह से सही नहीं कर सकते, लेकिन अगर हमारे अंदर सीखने की इच्छा है और उसे लगातार सुधारने का जुनून है, तो हम सफलता की ओर आगे बढ़ सकते हैं। इसका मतलब यह है कि हमें हमेशा नए अनुभवों से सीखने और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करते रहना चाहिए।

सफलता का मतलब सिर्फ ऊँचाई पर पहुंचना नहीं होता। असली सफलता तब होती है जब हम अपनी सीमाओं को पहचानते हैं, अपनी कमजोरियों पर काम करते हैं और लगातार जीवन में आगे बढ़ते रहते हैं। असली सफलता वहीं होती है जब हम कभी हार मानकर रुकते नहीं, बल्कि अपनी यात्रा में लगातार सीखते और आगे बढ़ते रहते हैं।

सफलता का कोई जादुई फॉर्मूला नहीं होता। यह लगातार मेहनत, सीखने की इच्छा और गलतियों से सुधार के रास्ते पर चलने से मिलती है। जो लोग मेहनत करते हैं और कठिनाइयों का सामना करते हुए उनसे सीखते हैं, वही लोग असल मायनों में सफल होते हैं। इसलिए हमें केवल अपनी प्रतिभा पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपने प्रयासों को लगातार बेहतर बनाने की दिशा में काम करते रहना चाहिए।

सीख नंबर तीन है—कड़ी मेहनत और प्रयास की अहमियत। कैरोल ड्वेक अपनी किताब माइंडसेट में बताती हैं कि सफलता की असली कुंजी केवल प्राकृतिक प्रतिभा या जन्मजात गुणों में नहीं होती। उनका मानना है कि किसी व्यक्ति की मानसिकता और लगातार किया गया प्रयास ही असली सफलता का आधार होते हैं। वे फिक्स्ड माइंडसेट और ग्रोथ माइंडसेट के बीच का अंतर समझाते हुए कहती हैं कि स्थिर मानसिकता वाले लोग यह मानते हैं कि उनकी क्षमताएं पहले से ही तय हैं और उन्हें बदला नहीं जा सकता। जबकि विकास मानसिकता वाले लोग यह मानते हैं कि मेहनत और प्रयास से वे अपनी क्षमताओं को बेहतर बना सकते हैं।

विकास मानसिकता वाले लोग कभी हार मानने का नाम नहीं लेते, क्योंकि उन्हें विश्वास होता है कि अगर वे लगातार मेहनत करेंगे और सही दिशा में प्रयास करेंगे तो वे किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं। "मैं नहीं कर सकता" से "मैं इसे सीख सकता हूं" की सोच अपनाना इस मानसिकता का प्रमुख हिस्सा है। जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास होता है कि वह किसी भी समस्या या कठिनाई को हल कर सकता है, तो वह चुनौतियों का सामना करने से डरता नहीं है। लेकिन अगर वह यह सोचता है कि "मैं इसे सीख सकता हूं", तो वह अपने प्रयासों को दोगुना कर देता है और समस्याओं को हल करने के नए तरीके ढूंढ़ता है।

ड्वेक का मानना है कि लोग हमेशा अपने आत्मविश्वास और मानसिकता के आधार पर अपनी दुनिया को आकार देते हैं। उनकी सलाह है कि अगर आप यह मानते हैं कि आपकी क्षमताएं विकासशील हैं, तो आप हमेशा बेहतर कर सकते हैं। इस सोच के साथ व्यक्ति अपने भीतर सुधार और आत्मविकास की प्रक्रिया को लगातार बनाए रखता है और अपने प्रयासों से प्रेरित रहता है।

सीख नंबर चार है—गलतियों से सीखना। कैरोल ड्वेक माइंडसेट में साफ करती हैं कि ग्रोथ माइंडसेट और फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोगों की गलतियों के प्रति प्रतिक्रिया बिल्कुल अलग होती है। विकास मानसिकता रखने वाले लोग अपनी गलतियों को केवल असफलता के रूप में नहीं देखते, बल्कि वे उन्हें आत्मविकास और सुधार के अवसर के रूप में स्वीकार करते हैं। इसके विपरीत, स्थिर मानसिकता वाले लोग अपनी गलतियों को नकारात्मक रूप में लेते हैं और उन्हें अपनी क्षमताओं की सीमा का प्रतीक मानते हैं। इसके कारण वे अपने प्रयासों को रोकने या कम करने की सोचने लगते हैं।

ड्वेक के अनुसार, विकास मानसिकता वाले लोग मानते हैं कि गलतियां उस रास्ते का हिस्सा होती हैं, जो उन्हें अपने लक्ष्यों तक ले जाता है—ना कि कोई रुकावट।

वे यह समझते हैं कि गलतियाँ हमें यह सिखाती हैं कि हमें कहाँ सुधार की आवश्यकता है और अगली बार हम कैसे बेहतर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी विद्यार्थी से गणित के एक कठिन सवाल में गलती हो जाती है, तो वह न सिर्फ उस गलती से निराश नहीं होता, बल्कि उस गलती को एक अवसर मानता है जिससे वह अपनी समझ को और बेहतर बना सकता है। वह यह सोचता है कि यह गलती मुझे यह सिखा रही है कि मुझे कहाँ ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है और मैं अगली बार इसे सही कर सकता हूँ।

इसके विपरीत, स्थिर मानसिकता वाले लोग अपनी गलतियों से डरते हैं और उन्हें अपनी असफलता के रूप में देखते हैं। वे अक्सर यह मानते हैं कि उनकी क्षमताएं पहले से ही तय हैं और अगर वे किसी काम में गलती करते हैं, तो इसका मतलब यह है कि वे उसमें अच्छे नहीं हैं। इस तरह की सोच से वे अपनी गलतियों से बचने की कोशिश करते हैं और नए प्रयासों से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी असफलता उनके आत्म-मूल्य को प्रभावित करती है।

उदाहरण के तौर पर, अगर वे किसी प्रतियोगिता में हार जाते हैं, तो वे इसे अपनी योग्यता की कमी मान सकते हैं और भविष्य में ऐसी प्रतियोगिताओं में भाग लेने से डर सकते हैं। इसलिए ड्वेक का कहना है कि अगर हम अपनी गलतियों को सीखने के अवसर के रूप में स्वीकार करें और उन्हें सुधारने का प्रयास करें, तो हम न केवल अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं, बल्कि जीवन में आने वाली किसी भी चुनौती का आत्मविश्वास के साथ सामना भी कर सकते हैं। यही विकास मानसिकता का मुख्य उद्देश्य है—सीखते रहना, सुधारते रहना और लगातार आगे बढ़ते रहना।

पाँचवीं सीख है—दूसरों की सफलता से प्रेरणा लेना। मनुष्य का मानसिक दृष्टिकोण उसके पूरे जीवन को आकार देता है। फिक्स्ड माइंडसेट और ग्रोथ माइंडसेट दो ऐसे दृष्टिकोण हैं जो यह तय करते हैं कि हम किसी स्थिति को कैसे देखते और उस पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, खासकर तब जब हम दूसरों की सफलता को देखते हैं।

फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग, जो यह मानते हैं कि उनकी क्षमताएं और बुद्धिमत्ता जन्म से ही तय होती हैं, वे दूसरों की सफलता को अपने लिए खतरे की तरह देखते हैं। जब वे किसी और को सफल होते देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनके पास वह खासियत नहीं है। उन्हें यह महसूस होता है कि किसी और की सफलता का मतलब है कि वे स्वयं असफल हैं, या उनके पास सफलता पाने के लिए जरूरी गुण नहीं हैं। ऐसे लोग दूसरों की उपलब्धियों को एक प्रतिस्पर्धा के रूप में देखते हैं और खुद को छोटा या असुरक्षित महसूस करते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास और भी कम हो जाता है और वे अपनी खुद की सफलता की दिशा में ध्यान नहीं दे पाते।

इसके विपरीत, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग दूसरों की सफलता को प्रेरणा और सीखने का एक मौका मानते हैं। वे मानते हैं कि सफलता मेहनत, प्रयास और सीखने की क्षमता से मिलती है, न कि सिर्फ जन्मजात प्रतिभा से। जब वे दूसरों को सफल होते देखते हैं, तो वे सोचते हैं कि अगर वे कर सकते हैं, तो मैं भी कर सकता हूँ। वे दूसरों से सीखने की कोशिश करते हैं और उनकी सफलता को अपने विकास के लिए प्रेरणा मानते हैं।

ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग आलोचना और असफलताओं को भी सकारात्मक रूप में लेते हैं और मानते हैं कि हर अनुभव कुछ न कुछ सिखाता है। जब वे दूसरों की सफलता देखते हैं, तो उन्हें यह विश्वास होता है कि अगर उन्होंने किया है तो मैं भी कर सकता हूँ। इस सोच के साथ वे अपनी सीमाओं और कठिनाइयों को चुनौती देते हैं। वे मानते हैं कि उनकी क्षमताएं बढ़ सकती हैं और हर नई उपलब्धि उनके लिए सीखने का एक और मौका है।

इस तरह वे अपनी यात्रा में लगातार आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और दूसरों से बेहतर बनने की प्रेरणा लेते हैं। दूसरों की सफलता को खतरे की तरह देखना और असुरक्षित महसूस करना फिक्स्ड माइंडसेट की निशानी है, जबकि ग्रोथ माइंडसेट में दूसरों की सफलता को प्रेरणा मानकर खुद को बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है। यह सकारात्मक दृष्टिकोण न केवल आत्मविश्वास बढ़ाता है, बल्कि हमें अपने जीवन में निरंतर सुधार और सफलता की ओर ले जाता है।
सीख नंबर छह – लगातार सीखते रहना जरूरी है।
जीवन में सफलता पाने के लिए लगातार सीखने की आदत बहुत जरूरी होती है। ज्ञान और कौशल कभी एक जैसे नहीं रहते, वे समय के साथ बदलते रहते हैं। अगर आप अपनी क्षमताओं को बढ़ाना चाहते हैं और सफलता की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो आपको जीवन भर कुछ नया सीखते रहने की आदत अपनानी होगी। यह सिर्फ आपके निजी विकास के लिए ही नहीं, बल्कि करियर, रिश्ते और मानसिक स्थिति को भी बेहतर बनाने के लिए जरूरी है।

ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग मानते हैं कि इंसान की क्षमताएं और कौशल समय के साथ बढ़ सकते हैं, अगर सही तरीके से कोशिश की जाए। वे समझते हैं कि लगातार सीखते रहना हमें बेहतर बनाता है और यही हमारे जीवन की सफलता की दिशा तय करता है। सीखने का यह सफर कभी खत्म नहीं होता। यह एक लगातार चलने वाली यात्रा है, जिसमें हर नई जानकारी हमें और सक्षम बनाती है।

आज के समय में दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। तकनीक और ज्ञान का स्तर लगातार आगे बढ़ रहा है। अगर आप खुद को अपडेट नहीं रखते, तो पीछे छूट सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर आप अपने करियर में सफल होना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आप समय-समय पर अपनी जानकारी और कौशल को अपडेट करते रहें। अगर आपने किसी खास क्षेत्र में एक बार सफलता पा भी ली है, तो यह मानना गलत होगा कि अब आपकी स्थिति हमेशा वैसी ही बनी रहेगी।

आजकल हर क्षेत्र में नई तकनीकें, नए उपकरण और नया ज्ञान आ रहा है। इन सबको अपनाने के लिए लगातार ट्रेनिंग और सीखते रहना जरूरी है। जो लोग इस प्रक्रिया से दूर रहते हैं, वे धीरे-धीरे खुद को समय के हिसाब से पिछड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। इसलिए लगातार सीखते रहना हमें बदलाव को अपनाने और उसका सामना करने के लिए तैयार करता है।

व्यक्तिगत जीवन में भी यह सोच हमारे रिश्तों और आत्म-विकास में मदद करती है। अगर हम जीवन भर सीखते रहते हैं, तो हम अपनी सोच, भावनाओं और दूसरों से रिश्तों को भी बेहतर बना सकते हैं। हम अपनी गलतियों से सीख सकते हैं, उन्हें सुधार सकते हैं और अपनी समझ को गहराई दे सकते हैं।

लगातार सीखते रहना सफलता की एक अहम कुंजी है। इस आदत को अपनाकर हम अपने ज्ञान और कौशल को लगातार बढ़ा सकते हैं और जीवन के अलग-अलग पहलुओं को सुधार सकते हैं। यह आदत हमें ना सिर्फ वर्तमान की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती है, बल्कि भविष्य की संभावनाओं के लिए भी एक मजबूत नींव तैयार करती है।

सीख नंबर सात – माइंडसेट बदला जा सकता है।
यह विचार 'माइंडसेट' किताब में कैरोल ड्वेक ने प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि हमारा मानसिक दृष्टिकोण – चाहे वह फिक्स्ड माइंडसेट हो या ग्रोथ माइंडसेट – बदला जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति में स्थिर मानसिकता है, तो वह सही सोच और अभ्यास के जरिए इसे विकासशील मानसिकता में बदल सकता है।

स्थिर मानसिकता वाले लोग मानते हैं कि उनकी बुद्धिमत्ता और क्षमताएं जन्म से तय होती हैं और उन्हें बदला नहीं जा सकता। वे असफलता से डरते हैं और आमतौर पर चुनौतियों से बचते हैं। उनके लिए सफलता केवल उन्हीं चीजों पर निर्भर करती है, जो वे पहले से जानते हैं या कर सकते हैं। ऐसे लोग नई चुनौतियों का सामना करने में डरते हैं और आलोचना को व्यक्तिगत रूप से ले लेते हैं।

दूसरी ओर, विकासशील मानसिकता वाले लोग मानते हैं कि किसी भी काम में सफलता मेहनत, अभ्यास और लगातार सीखने से हासिल की जा सकती है। वे असफलताओं को सीखने और खुद को सुधारने का मौका मानते हैं। ऐसे लोग आलोचना और चुनौतियों को सकारात्मक रूप में लेते हैं और इनसे अपने कौशल को और बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।

अब सवाल ये है कि स्थिर मानसिकता को विकासशील मानसिकता में कैसे बदला जा सकता है? कैरोल ड्वेक के अनुसार, सबसे पहला कदम यह है कि व्यक्ति यह समझे कि मानसिकता बदली जा सकती है। जब कोई यह जानता है कि वह अपनी सोच को विकसित कर सकता है, तो उसे खुद में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा मिलती है। माइंडसेट को बदला जा सकता है और यह एक लंबी प्रक्रिया होती है, लेकिन सही दृष्टिकोण और अभ्यास से इसे बदला जा सकता है।

स्थिर मानसिकता को विकासशील मानसिकता में बदलने के लिए आपको अपने विचारों, प्रतिक्रियाओं और मेहनत पर ध्यान देना होगा। जब आप यह समझ जाते हैं कि असफलताएं भी सीखने का एक हिस्सा हैं और कड़ी मेहनत से ही सफलता मिलती है, तब आप अपने जीवन में सही मायनों में बदलाव ला सकते हैं।

तो अब सवाल उठता है – क्या आप अपना माइंडसेट बदल सकते हैं? क्या फिक्स्ड माइंडसेट से ग्रोथ माइंडसेट की ओर बढ़ना संभव है? हाँ, बिल्कुल! माइंडसेट कोई स्थायी चीज नहीं है, यह एक सोचने की आदत है, जिसे बदला जा सकता है।

सोचिए, अगर थॉमस एडिसन ने एक हजार बार फेल होने के बाद हार मान ली होती, तो क्या हमें आज लाइट बल्ब मिलता? अगर सचिन तेंदुलकर ने अपनी शुरुआती असफलताओं से डरकर क्रिकेट छोड़ दिया होता, तो क्या वे आज महान क्रिकेटर कहलाते?

सफल लोग सिर्फ इसलिए सफल नहीं होते क्योंकि वे जन्म से ही प्रतिभाशाली होते हैं, बल्कि इसलिए होते हैं क्योंकि वे सीखने की मानसिकता अपनाते हैं।

तो अगली बार जब आपको लगे कि आप किसी चीज में अच्छे नहीं हैं या कोई चुनौती आपके बस की बात नहीं है, तो खुद से कहिए – "अभी नहीं, लेकिन मैं सीख सकता हूं।"


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याद रखिए – बदलाव की शुरुआत सोच से होती है, और सोच बदलती है एक अच्छी कहानी से।

जय हिंद, जय भारत!

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